Erscheinungsort: Hermannstadt
Erscheinungsjahr: 1891
Quelle: Melas, Heinrich: Gedichte von Alexander Petöfi II. (1891)
Inhalt:
1846
| Deutscher Titel | Originaltitel |
|---|---|
| Ein Wunder Gottes. | Isten csodája |
| Der Wahnsinnige. | Az őrült |
| Die Blume darf... | Minden virágnak |
| Wenn im Herbst der Nord... | |
| Ich weine nicht... | Nem sírok én |
| Nachruf an Peter Vayda. | Vajda Péter halálára |
| Es blauen hinter mir... | |
| Was hab' ich noch in dieser Welt... | Mért vagyok én még a világon? |
| Das Menschenleben ist... | Annyit sem ér az élet |
| Ich hatte Freunde... | Voltak barátim |
| Auf prächtigen Schwingen... | Szállnak reményink... |
| Erinnerung. | Emlékezet |
| Im Glück und Unglück... | |
| In der Ferne dort... | Amott a távol kék ködében |
| Ob's Schön'res als... | Mi szebb mint? |
| Die Locke hier aus meinem Haar... | Hajamnak egy fürtjét levágom én |
| Mein Liebesfrühling ging... | Elváltam a lánykától |
| O, laßt mich gehn... | Szeretném itthagyni |
| Hier steh' ich in des Blachfelds Schoß... | Itt állok a rónaközepén |
| Ich wollte, daß Sturmwind sei... | Ha jőne, oly nagy fergeteg... |
| Was ist das Leid? | A bánat egy nagy óceán |
| Als stützt' ich das Gewicht... | Mintha a nagy nehéz |
| O Mädchen, dunkel... | Oh lyány! Szemed… |
| Was ist der Ruhm? | Mi a dicsőség? |
| Was aßest du, o Erde? | Mit ettél Föld? |
| Es ist ein Friedhof... | Mely’k a legvígabb temető? |
| Einst sind die Weisen... | Egy bölcs Hajdan… |
| Du trotz'ge Maid!... | Dacos Leány! |
| Beim düstern Kerzenschein... | Gyertyám homályosan lobog |
| Mit einem Stern kommt Jeder... | Mondják, hogy mindennikünk |
| Wenn's auf der Erde... | |
| Lächlet aus den braunen Bogen... | Mosolyogjatok rám |
| Was wird wohl aus dem Lachen... | Vajon mi ér? |
| Mir kam schon öfters... | Elmém ezen sokat gondolkodik |
| Das Altern ist... | Nem csak mi vénülünk |
| Es zieht der Landmann... | |
| Wenn man die Herzen... | |
| Wer zählt die Tropfen... | Hány csepp van az óceánban? |
| Ihr sagt mir... | Barátim vagytok |
| Des Menschen Wünsche... | Futó folyam hullámai |
| Erlaubt mir, den Verfall... | |
| Ihr Geister, die ihr... | |
| Du Jugend... | Te ifjúság |
| Wie endet wohl... | Mivé lesz a föld?... |
| Mein Herz ist... | Az én szívem.. |
| Wo mag der Mensch... | Az ember ugyan hova lesz…? |
| Wer will's wagen... | |
| Habt Acht! | Odanézzetek! |
| Ich sang auf euch... | Már sokszor énekeltem |
| Erhabene Nacht! | Fönséges éj! |
| Geliebte, wie?... | |
| Ob die Seele, wie ein Lieb... | |
| Ach, Liebe, ach!... | Oh szerelem... |
| Die guten Freunde... | Barátim megölelének |
| Gott gab dem Feld... | Földét a földmives |
| Wie ist mir? | |
| Der Mann kommt krank... | A férj hazajő betegen |
| Warum kann ich... | Miért hogy láthatatlanok... |
| Vergänglichkeit. | Múlandóság |
| Die Träume sind... | Az álom |
| Die Witwe legte... | Az özvegy |
| Manchem König... | Voltak fejedelmek |
| Der Mühe Lohn... | |
| Die blöden Menschen rennen... | Mint ló fut a boldogság után |
| Wie dieser Reiche... | E gazdag úr |
| Zwei Männer gab es... | Midőn a földön |
| Der Tropfen Thau... | Fövényszem... Harmatcsepp |
| Ich will mein Herz... | Kivágom én... |
| Mein Geist ist tief... | |
| Die Liebe des Meeres. | A szerelmes tenger |
| Ich ließ die Stadt im Stiche... | Elhagytam én a várost |
| Im Walde. | Az erdőben |
| Unstät wandert... | |
| In das Auge sah ich... | Barna menyecskének |
| Hell grünen die Akazien... | Zöldleveles, fehér... |
| Längst schon ist der Abendglocke... | Rég elhúzták az esteli harangot |
| O Schicksal, gieb mir Raum... | Sors, nyiss nekem tért… |
| Welthaß. | Világgyűlölet |
| Erst heute werd' ich dessen inne... | Most kezdem én csak még ismerni |
| Ins Stammbuch des Fräuleins L. F. | F.L. kisasszony emlékkönyvébe |
| Knechtschaft. | Rabság |
| Ich liebe... | Szeretek én |
| Das Volk. | A nép |
| Auf der Hebescher Ebene. | A hevesi rónán |
| Das Herz, wenn es nicht liebt... | Megfagy a szív ha nem szeret |
| In Nagy=Karoly. | Nagykárolyban |
| Nachtigallen und Lerchen. | Csalogányok és Pacsírták |
| Die Kette. | A bilincs |
| Bin ich verliebt? | Szerelmes vagyok én... |
| Ja, ja, ich bin verliebt... | Szerelmes vagyok én... |
| Ach, wie schwer ist mir das Herz... | Nehéz, nehéz a szivem... |
| Du süßer Pfühl der Liebe... | Szerelemnek rózsákkal |
| Die Wolke fliegt... | Száll a felhő |
| Ein Herbsttag ist's.... | Borús, ködös őszi idő... |
| Die Wolke sinkt... | Ereszkedik le a felhő |
| Meine Phantasie stammt... | Az én képzeletem nem |
| Du, mein Mädchen, bist dem Lenz... | Te a tavaszt szereted |
| Auf der Bank im Garten... | Kinn a kertben voltunk |
| Meine Sonne du... | Te vagy, te vagy, barna kislyány |
| Mein Busen scheint mir... | |
| Hat dein Blick mir nicht gelogen... | Ha szavaid megfontolom |
| Es war nicht Liebe... | Költői ábránd volt mit eddig érzek |
| Ein schöner Traum... | Álmodtam szépet, gyönyörűt |
| Es war einmal ein armer Knabe... | Volt egyszer egy szegény fiú |
| Nur wenig Tage... | Egy pár rövid nap |
| Mich durchströmt ein neues Leben... | Nem csoda ha újra élek |
| Du liebst mich also... | Szeretsz tehát |
| Ein Arrestant behält... | Mikor a lánc lehull |
| Freudenloser Spätherbstmorgen... | Kellemetlen őszi reggel |
| Mir träumt von einer blut'gen Zeit... | Véres napokról álmodom |
| Hellblau die Nacht... | Világoskék a csillagos éjszaka... |
| Ins Stammbuch des Fräuleins R. E. | E. R kisasszony emlékkönyvébe |
| Ins Stammbuch des Fräuleins I. K. | K.J kisasszony emlékkönyvébe |
| Sprich, was ist recht fern?... | Mi van innen távol |
| O, die Welt begreift mich nicht... | Nem ért engem a világ |
| Der Vogel schwang sich... | |
| Am Weihnachtsabend. | Karácsonkor |
| Das magyarische Volk. | A magyar nemzet |
| Mich quält ein peinlicher Gedanke... | Egy gondolat bánt engemet... |
1847
| Deutscher Titel | Originaltitel |
|---|---|
| Meine Lieder. | |
| Ein Freund, die Jugend... | |
| Das "Hundeloch". | |
| Bist du ein Mann, sei's wahrhaft! | |
| Lied der Hunde. | |
| Lied der Wölfe. | |
| Die Dichter des neunzehnten Jahrhunderts. | |
| Ein heiliges Grab. | |
| An Johann Arany. | |
| Ich bin ein Ungar... | |
| Bitteres Leben, süße Liebe. | |
| Die Theiß. | |
| Der Pfaffe trägt die Kutte... | |
| Die Wolken. | |
| Der WInd. | |
| O, ich war ein froher Zecher... | |
| Nun ist sie wieder da, die alte Noth... | |
| Im Namen des Volkes. | |
| Warum denk' ich noch an sie... | |
| Das Waisenmädchen. | |
| Was war eh'mals meine Liebe? | |
| Hirtenknabe, Pelz vom Rücken!... | |
| Soldatenleben. | |
| Die Blumen. | |
| Die Langmuth. | |
| Ins Stammbuch von F. A. | |
| Zerlumpte Helden. | |
| Zöld Marczi. | |
| Denk' ich dein, du Liebliche... | |
| Kann außer dir ein Mädchen... | |
| Feuer. | |
| Es fliegt der Straßenstaub... | |
| Im Bergwerk. | |
| Endlich hab' ich dich, mein Julchen... | |
| Auf der Majtenyer Ebene. | |
| Ich habe dich, und du hast mich... | |
| An Ladislaus Arany. | |
| Schwester Sara. | |
| Wie schön ist die Welt! | |
| Die Thurmruine. | |
| Ich wollt', ich wär' ein Bach... | |
| Der Storch. | |
| Das Land ist öd', auf dem ich gehe... | |
| Reise im Unterland. | |
| Du fragst, ob ich dich liebe? | |
| Abschiedstrunk. | |
| Berühmte Schönheit. | |
| Folgst du mir? | |
| Mein Zelt, das brach ich ab... | |
| Meine Muse und meine Braut. | |
| An die Zeit. | |
| Der Wald hat seine Vögelein... | |
| Abend=Dämmerung. | |
| Panyo Panni. | |
| In der Festung von Munkacs. | |
| Schwüler Mittag... | |
| Der Berg dort... | |
| Ich seh' ins Morgenland... | |
| Die Sonne sank schon längst... | |
| Jetzt - verzeihe... | |
| Brief an Johann Arany. | |
| Am 5. August. | |
| An Fräulein M. T. | |
| Die Dichtkunst. | |
| Mein Pegasus. | |
| An der Szamosch... | |
| Ein buntes Leben. | |
| Der Wanderbursch. | |
| Mein Sonnenlicht... | |
| Homer und Ossian. | |
| An Fräulein B. O. | |
| Mein Liebchen hatte mich gekränkt... | |
| Bin ein guter Dichter... | |
| Der gestirnte Himmel. | |
| Irgendwie. | |
| Mein Herz. | |
| Herbstanfang. | |
| Abschied vom Junggesellenleben. | |
| Giebts's einen zweiten Riesen... | |
| Der Kleinknecht. | |
| Die Wüstenbewohner. | |
| Jenseits jener blauen Bergeskette... | |
| Der Herbstwind flüstert... | |
| Seit mein Julchen meine Frau... | |
| Ende September. | |
| Einst und jetzt. | |
| Die letzten Blumen. | |
| Himmel und Erde. | |
| Stillleben. | |
| In der Kutsche und zu Fuß. | |
| Ja, ja dich zu erwerben... | |
| Philosophie und Weisheit. | |
| Zehn Paar Küsse... | |
| Das Grab des Bettlers. | |
| O, welch ein Jahr... | |
| Laßt mich diese Stadt verlassen... | |
| Bei Johann Arany. | |
| Aus dem Fenster schaue... | |
| Du lobst an mir, Geliebte... | |
| In meinem Herzen ist heller Morgen... | |
| Richter, deines Amtes Pflichten... | |
| Herr Pato Pal. | |
| Herbstnacht. | |
| Du Röslein an des Hügels Lehne... | |
| Hör' mal, Weibchen... | |
| Die Nacht. | |
| Okatootaia. | |
| Lächle, lächle mir... | |
| Am Namenstage meiner Frau. | |
| Meine Barke schaukelt... | |
| Kaum schwand das Morgenroth... | |
| Das Gestüt ist auf der Weide... | |
| An den Zorn. | |
| In der Sylvesternacht d. J. 1847. |
1848.
| Deutscher Titel | Originaltitel |
|---|---|
| Die Winterabende. | |
| Frau der Frauen... | |
| Frau, was näh'st du?... | |
| Ich liebe dich, ich liebe dich... | |
| Der gefangene Löwe. | |
| Die Pußta im WInter. | |
| Wie soll ich dich nennen? | |
| Der gute Lehrer. | |
| Unterm Rosenbaum der Liebe... | |
| Das Thal und der Berg. | |
| Draußen ist es eisig kalt... | |
| Auf den Tod Rozsavölgyi's. | |
| Italien. | |
| Die Henne meiner Mutter. | |
| Des Winters Tod. | |
| Vaterlandslied. | |
| Der 15. März 1848. | |
| Trinklied. | |
| Die See hat sich empöret... | |
| Giebt es unter uns noch Einen... | |
| Der König und der Henker. | |
| Meine Frau und mein Schwert. | |
| An den Frühling. | |
| Der Gott der Magyaren. | |
| Fänd' ich auf der Welt... | |
| Mag ich wohin immer schauen... | |
| Schwarz=rothes Lied. | |
| Auf! | |
| Was verfolgst du mich... | |
| Das Zwerggeschlecht... | |
| Ich reite, du bist nicht bei mir... | |
| Auf der Stätte meiner Geburt. | |
| Klein=Kumanien. | |
| Der Ungar ist nun wieder Ungar... | |
| Wladislaw, der Gute. | |
| Republik. | |
| Die Schwadron Lenkei's. | |
| Revolution. | |
| Drei Vögel. | |
| Heut vor einem Jahre... | |
| Da steh' ich schon im Sommer... | |
| In den Bergen. | |
| Hört doch auf zu singen... | |
| Der Busch an den Sturmwind. | |
| Wir saßen hier... | |
| An die Szekler. | |
| Abschied. | |
| Akazien im Garten... | |
| Der Herbst ist kalt... | |
| Welch ein Lärmen... | |
| Mein liebes Weib, vermag ich... | |
| Ich liebe dich, mein Schatz! | |
| Im Herbst. | |
| Verwildert ist der Park... | |
| Schlachtlied. | |
| Bei der Geburt meines Sohnes. | |
| Am Jahresschlusse. |
1849
| Deutscher Titel | Originaltitel |
|---|---|
| Europa ruht... | |
| Nun sag' ich doch, der Ungar siegt... | |
| In der Schlacht. | |
| Ich höre wieder Lerchensang... | |
| Wer sähe dieser sonn'gen Flur... | |
| Die Szekler. | |
| In Vajda=Hunyad. | |
| Auf den Tod meiner Aeltern. | |
| Der Honved. | |
| Auf, in den heiligen Krieg! | |
| O Zeit, wie schreckensvoll... |
Anhang
| Deutscher Titel | Originaltitel | Entstehungsjahr |
|---|---|---|
| An die Ungetreue. | 1838 | |
| In das Stammbuch des Ludwig Szebernyi. | 1839 | |
| Dort die Tscharda... | 1841 | |
| Du, Biene, machst... | 1841 | |
| Wanderlieder. | 1841 | |
| Rache. | 1841 | |
| Ewiger Gram. | 1841 | |
| Liederquell. | 1842 | |
| Ideal und Wirklichkeit. | 1842 | |
| Das Ideal. | 1842 | |
| Diebische Hußaren. | 1842 | |
| Volkslieder. | 1843 | |
| Meine Thränen. | 1843 | |
| Lehel. | 1845 | |
| Ich bin so schläfrig... | 1845 oder 1846 | |
| Die Welt ist eine große, theure Schänke... | 1845 | |
| Bin nun wieder in der Heimath... | 1847 | |
| Der Nebel breitet... | 1847 |